Monday, July 27, 2020

टी.वी.कार्यक्रमों से बच्चों के दिमाग पर हो रहा है बुरा असर

    जब से लाकडाउन पीरियेड शुरू हुआ और अब अनलॉक चल रहा है, हम सभी मोबाईल, कम्यूटर और टी.वी. पर ज्‍यादा समय बिता रहे हैं, विशेषकर बच्चे. जब ये टेलीविजन के सामने होते हैं हमारी हालत बहुत दयनीय हो जाती है क्योकि हम अपनी मर्जी के कार्यक्रम नहीं देख पाते और बच्चों द्वारा देखे गये कार्यक्रम मजबूरीवश देखने पड़ रहे हैं। ऐसे समय में मैंने कुछ नृत्य और गायन के रियलटी शो (?) के कार्यक्रम देखकर सिर पकड़ लिया। नृत्य के कार्यक्रमों के बारे में क्या कहूं, फूहडता, अश्‍लीलता और भौंडेपन की तमाम हदों को पार कर रहें हैं ये कार्यक्रम. सी ग्रेड मूवी के जैसे घटिया कार्यक्रम प्रसारित किये जा रहे हैं आजकल, हमारे देश में बहुत बडा दर्शक वर्ग इन्‍हे बडे चाव से देख रहा है. पूरा का पूरा प्रोग्राम स्क्रिप्टेड होता है. बच्चों के सामने द्विअर्थी बातें की जाती हैं और बच्‍चों के आपस में स्नेह को प्रेम प्रसंगों में बदलकर तोड मरोडकर प्रस्तुत करके हम बच्चों को क्या सिखा रहे हैं? एक डांस कार्यक्रम में भारती नाम की एंकर इतनी फूहडता और निम्न स्तर का प्रस्तुतिकरण करती है जिसकी कोई सीमा नहीं। इसकी किसी भी बात में हंसी नहीं आती बल्कि क्षोभ पैदा होता है, ये एंकर अपने पति के साथ बच्चों के सामने भददे कमेंट करती है और अशोभनीय बाते करती है। इनकी हरकतों पर सभी को हंसते हुए दिखाया जाता है, मजे लेते हुए दिखाया जाता है, इन बच्चों के मां पिता सब आनंदित दिखते हैं. आजकल इस प्रकार के कार्यक्रमों में गरीब और निम्न‍ मध्यम वर्ग परिवारों के बच्चों को टारगेट किया जा रहा है कई बार ऐसी परिस्थितियां बनीं जो उनकी गरीबी का मखौल उडाती लगती हैं लेकिन ग्लैमर के चकाचौंध में सबकी बुद्धि पर ताले पड गये हैं। प्रतिभाएं तो अपना रास्ता खुद चुन लेती हैं पर इस प्रकार के बेसिरपैर के कार्यक्रमों के सहारे अच्छी प्रतिभाएं भी प्रोग्राम खत्‍म होने के साथ ही खत्म हो जाती हैं और एक निराशा और हताशा का दौर इन बच्चों के जीवन में शुरू हो जाता है।

        यही बात सिंगिंग काम्पीटिशन प्रोग्राम्स में देखने को मिल रही है. एंकर उछलकूद करते रहते हैं, निर्णायक उन लोगों को बनाया जाता है जिन्हें संगीत की कोई समझ नहीं है। इन कार्यक्रमों का पूरी तरह से व्य्वसायीकरण हो गया है और दर्शको का दोहन किया जा रहा है. बहुत पहले दूरदर्शन पर भी इस प्रकार के प्रतिभा खोज के कार्यक्रम आते थे पर उनका स्तर बहुत उंचा था, एंकर, प्रतिभागी और निर्णायक सभी शालीन तरीके से गुणवत्ता‍पूर्ण कार्यक्रम प्रस्तुंत करते थे। पर अब तो बुद्धू बक्सा पूरी तरह से बालीवुड के नाकाबिल धंधेबाजों के कब्जे में आ गया है नतीजन भौंडे और बेसिरपैर के कार्यक्रम परोसे जा रहे हैं और हम मजबूर है सब देख रहे हैं. विशेषकर बच्चे जैसा देख रहे हैं उसे सही मान रहे हैं और इन कार्यक्रमों में शिरकत करने की इच्छा रखते हैं। पता नहीं ये सब तमाशा कब खतम होगा। बाल संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्थाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं को इस दिशा में पहल करनी चाहिए।

1 comment:

  1. बहुत बढ़िया। बिल्कुल सही कहा आपने।

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